आले रसूल शब्द का तहक़ीकी जायज़ा (शोधात्मक विश्लेषण)

25 April 20224 min read

Author: Momin

सैयद व आले रसूल शब्दों का प्रयोग अजमी (ईरानी और गैर-अरबी) विशेषकर भारतीय उपमहाद्वीप के विद्वानों द्वारा जिस अर्थ में किया जाता है उसका अपने शाब्दिक अर्थ व इस्लामिक मान्यताओं से कोई सम्बन्ध नही है। अधिकांश अजमी विद्वानों द्वारा अपने लेखो,पुस्तको व भाषणों में सैयद व आले रसूल शब्द का प्रयोग हजरत मोहम्मद सल्ल0 के तथाकथित वंशजो के लिए किया जाता है, और दोनों शब्दों को एक दूसरे का पर्यायवाची बना दिया गया है। हालाँकि दोनों शब्द अपने माना (अर्थ) के ऐतबार से बिल्कुल अलग है तथा इनका किसी वंश, नस्ल, खानदान अथवा क़ौम से कोई सम्बन्ध नही है। किन्तु फिर भी अधिकांश अजमी विद्वानों द्वारा ऐसा किया गया। फलस्वरूप हिन्दू धर्म के ब्रहमणवाद की तरह मुसलमानो में भी इबलीसवाद (जन्म के आधार पर श्रेष्ठता) का सिद्धांत स्थापित करके तथाकथित सैयद/आले रसूल की वंश के आधार पर औरों पर उनकी श्रेष्ठता घोषित कर दी गयी और हिन्दू वर्ण व्यवस्था (ब्रहमण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र) की तरह मुसलमानों का भी अशराफ,अजलाफ व अरजाल के रूप में वर्गीकरण कर दिया गया जिसकी इस्लाम में कल्पना तक नहीं है।

क़ुरआन सूरः अहज़ाब में स्पष्ट शब्दों में एलान करता है कि-

मोहम्मद (स0अ0) तुम्हारे मर्दों में-से किसी के बाप नही हैं।

क़ुरआन के इस एलान के बाद भी इबलीसवादियों ने आप सल्ल0 की तरफ ये झूठा कथन गढ़ कर प्रचारित कर दिया कि मोहम्मद सल्ल0 ने कहा था कि-

मेरा वंश मेरी पुत्री फातिमा (रज़ी0) से चलेगा।

इस्लाम को प्राकृतिक धर्म का दावा करने वाले उपरोक्त कथन को उदधृत करते हुए इस सार्वभौमिक सत्य को भूल जाते है कि प्राकृतिक नियम के साथ दुनिया के तमाम धर्मो, विज्ञान व स्वयं इस्लाम के अनुसार भी इंसानों में वंश नर से व जानवरो में मादा से चलता है।

सैयद शब्द ही की तरह आले रसूल शब्द का प्रयोग भी इबलीसवादियो ने बिल्कुल मनमाने तरीके से मोहम्मद सल्ल0 की तथाकथित औलाद के अर्थ में ख़ास कर दिया है जबकि इस्लामिक सिद्धान्तों के अनुसार आल लफ्ज़ अहलो अयाल के लिए भी इस्तेमाल होता है और पैरोकार के लिए भी। जब तरका (वरसा, जायदाद का बँटवारा) वगैरह का मसला हो तो वहाँ आल से मुराद अहलो अयाल होंगे और जब बात दीन व शरीयत की कोई अन्य बात हो तो आल से मुराद पैरोकार के होंगे। जिसका प्रमाण निम्नवत है :-

(1) कुरान में कई सूरतो (अध्यायों) में (जैसे- बकरा-49-50, आले इमरान-11, आराफ-130, मोमिन-46 आदि) आले फ़िरऔन लफ्ज़ का इस्तेमाल हुआ है और ये कोई साबित नहीं कर सकता कि आले फिरऔन लफ्ज़ का इस्तेमाल फिरऔन की औलाद के लिए हुआ है। सूरः बकरा में तो फ़िरऔन और आले फ़िरऔन के सम्बन्ध में कहा गया है कि हमने फ़िरऔन व आले फ़िरऔन को दरिया में गर्क (डुबो) कर दिया और क़ुरआन व ऐतिहासिक तथ्यों से निर्विवादित रूप से साबित है कि दरिया में फ़िरऔन के साथ उसकी सेना, पैरोकार, हमनवां डूबे थे न कि उसकी कोई औलाद (सन्तान)।

(2) आप सल्ल0 ने इरशाद फ़रमाया कि -

“जिसने मेरे तरीके की पैरवी की वह मेरी आल है।” (शरहुल मोहज़्ज़ब-लेखक इमाम नववी)

(3) दीनी हैसियत से सभी मुत्तक़ी (परहेजगार, अच्छे कर्म करने वाले) मुसलमान आले नबी (रसूल) हैं जैसा कि मोहम्मद सल्ल0 ने फ़रमाया था जब आल के सम्बन्ध में आप सल्ल0 से सहाबा द्वारा सवाल किया गया था। (कुल्लियाते अबील बक्का)

उपरोक्त साक्ष्यों से स्पष्ट है कि सैयद शब्द का प्रयोग किसी वंश अथवा क़ौम के लिए करना व आले रसूल शब्द का प्रयोग रसूल सल्ल0 की तथाकथित औलाद के लिए ख़ास करना उसके शाब्दिक अर्थ के साथ-साथ क़ुरआन के कथनों, हदीस के वर्णनों और सहाबा (मुहम्मद के साथियों) के कथनों, विचारों व सिद्धान्तों के भी खिलाफ है और इबलीसवादी विचारधारा का द्योतक है ऐसे व्यक्ति के लिए मैं मात्र एक ही शब्द उपयुक्त पाता हूँ और वह शब्द है आले इबलीस।







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